आमतौर पर भोजन के लिए ही मछली पालन का काम किया जाता है, क्यूंकि अच्छी एवं महंगी फिश का इस्तेमाल बड़े बड़े रेस्टोरेंट्स में खाने के तौर पर किया जाता है। दुनिया भर में, मछली पालन में उत्पादित सबसे महत्वपूर्ण मछली की प्रजातियाँ कार्प, तिलापिया, सामन और कैटफ़िश हैं, जिन्हें ज़्यादातर मछली पालन उद्योगों में पाला जाता है। मछली पालन उद्योगों में मछली के पिंजरों को झीलों, खाड़ी, तालाबों, नदियों, या महासागरों में रखा जाता है, इस विधि को “ऑफ-किनारे खेती” भी कहा जाता है। मछलियों को कृत्रिम रूप से खिलाया जाता है, और जब वे बाजार में पहुंचाने लायक हो जाती हैं, एवं अच्छे आकार तक पहुंच जाती हैं, तब उन्हें मार्किट में बेच दिया जाता है।
भारत सरकार के द्वारा पशु पालन, मुर्गी पालन के अलावा मछली पालन (Fish Farming) के लिए भी लोगों को उत्साहित किया जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों तथा किसानों को विशेष रूप से मछली पालन की तरफ प्रेरित किया जा रहा है, ताकि गरीब तबके के लोग फिश फार्मिंग को एक सहायक धंदे के रूप में आरम्भ कर सकें। भारत सरकार इसी लिए इस तरफ ध्यान दे रही है ताकि गरीब लोग इस सहायक धंदे को अपना सकें और आर्थिक तौर पर खुशहाल हो सकें। मोदी सरकार ने अब मछली पालन (Fish Farming) को किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) में भी शामिल कर लिया है। यह सब इस लिए भी किया जा रहा है, ताकि किसान खेती के साथ साथ मछली पालन का काम शुरू करके अपनी कमाई में इजाफा कर पाएं। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार भी मछली पालन का काम करने के लिए लोगों को काफी कम ब्याज पर लोन उपलब्ध कराती है, ताकि वह आसान किश्तों पर इस काम को शुरू कर सकें।
कई गांवो में और शहरों में मछली पालन करके मत्स्य पालन के उद्योग को बड़े पैमाने पर विकसित किया जा रहा है क्यूंकि एक अनुमान अनुसार पूरे भारत में मछली पालन के लिए जलवायु बहुत अनुकूल है। पूरे विश्व में भी भारत देश को मत्स्य पालन में दूसरा स्थान हासिल है अर्थात मछली पालन का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है तथा विश्व में देश का नाम है। मत्स्य पालन की मांग इसलिए ही ज्यादा है क्यूंकि मछली को सबसे ज्यादा प्रोटीन का स्रोत माना जाता है। मछली से कई तरह के उत्पाद भी प्राप्त होते हैं, जैसे कि मांस, मछली का तेल आदि। इसलिए विश्व स्तर पर मछली की मांग काफी ज्यादा है और फिश फार्मिंग रोज़गार का एक लोकप्रिय एवं प्रभावशाली साधन है।
फिश फार्मिंग या मछली पालन का काम व्यक्ति अपने खुद के तालाब (Fish Pond) पर कर सकता है, यदि खुद का तालाब नहीं है तो किराए पर तालाब लेकर भी मछली पालन का काम कर सकता है। मछली पालन का काम आरम्भ करने के लिए भारत सरकार भी आर्थिक सहायता प्रदान करती है। राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार की योजनाओं भी आरम्भ की गयी हैं, जिनके तहत लोन दिए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त फिश फार्मिंग शुरू करने के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किये गए हैं, जहां से लोग प्रशिक्षण भी प्राप्त कर सकते हैं और काम की बारीकियां सीख सकते हैं। इन प्रशिक्षण केंद्र से सिखलायी प्राप्त कर के वह निसंकोच मछली पालन शुरू करके इस काम को कमाई के साधन के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
मार्किट में इन सभी मछलियों की कीमत 200 से 400 रुपये किलो तक है, जो कि यह दर्शाती है कि मार्किट में मछलियों की काफी डिमांड है। मछली पालन का काम ठहरे हुए पानी और बहते हुए पानी दोनों में ही किया जा सकता है। बहते हुए पानी में मछली पालन/ फिश फार्मिंग को ‘रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम’ (आरएएस) कहा जाता है; जबकि मैदानी इलाकों में ज्यादातर ठहरे हुए पानी में मछली पालन का व्यवसाय किया जाता है।
मछली पालन का व्यवसाय करने के लिए तालाबों को बरसात से पहले ही तैयार कर लेना चाहिए। फिश फार्मिंग के लिए तालाबों के प्रबंधन को तीन भागों में आवंटित किया गया है ताकि व्यक्ति तालाबों का प्रबंधन कर पाए। प्रबंधन करने की सारी जानकारी निम्नलिखित प्रकार है:-
संचयन से पहले का प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है अर्थात लाभ की तैयारी करना अति आवश्यक कार्य है। मछली के बीज तालाब में डालने से पहले विशेषज्ञों से ट्रेनिंग लेनी जरूरी होती है ताकि यह समझ में आ पाए कि तालाब को कैसे तैयार किया जाएगा ताकि बीच अच्छे से पनप पाए। तालाब को तैयार करने के बाद मछली पालन के कार्य को आरंभ किया जाता है।
संचयन के समय मछली के बीज का प्रबंधन करना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। संचयन के समय के प्रबंधन में मछली की प्रजाति, मछली की संख्या, वजन, लंबाई एवं किस समय मछली के बीच डाले जाएंगे; इन सब बातों का ध्यान रखा जाता है ताकि किसी भी प्रकार की समस्या ना आए।
मछली के बीज डालने के बाद का समय संचयन के बाद का समय होता है। संचयन के बाद के प्रबंधन के लिए मछली बीज डालने के पश्चात मछली बीज की देखभाल करना बहुत अहम होता है। यह सारी जानकारी भी मछली पालन के विभाग से ही प्राप्त की जाती है कि मछली बीज डालने के पश्चात किस तरह देखभाल करनी चाहिए।
मछली पालन का व्यवसाय शुरू करने के लिए लगभग ₹20,00000 तक की लागत आती है अर्थात 20,00000 रुपए तक का खर्च आ जाता है। यदि कोई व्यक्ति लोन प्राप्त करके मछली पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहता है तो उस व्यक्ति को केवल ₹5,00000 का इंतजाम स्वयं करना पड़ता है, बाकी की राशि केंद्र सरकार द्वारा अलग-अलग योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाती है। इसके अलावा लोन पर कुछ सब्सिडी भी सरकार द्वारा दी जाती है, जिसकी वजह से फिश फार्मिंग शुरू करने का खर्च काफी कम हो जाता है अर्थात लागत कम पड़ती है और बिना किसी परेशानी के फिश फार्मिंग का काम शुरू हो जाता है।
विश्व स्तर पर फिश फार्मिंग बहुत ही डिमांड में है इसलिए इसकी मांग को देखते हुए कई देशों में सरकारों ने लोगों को काम शुरू करने की के लिए प्रेरित करने के लिए कई योजनाएं जारी किए हैं। इसी तर्ज पर भारत सरकार ने भी कई प्रयत्न किए हैं ताकि लोग इस काम से जुड़ पाए जो भी लोग मछली पालन शुरू करना चाहते हैं उन्हें अवश्य सरकार से मदद प्राप्त करके काम आरंभ कर देना चाहिए।
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