आज के समय की जरूरत है निजीकरण। रेलवे स्टेशन और रेलगाड़ियों से लेकर हवाईअड्डों, कंटेनर कॉर्पोरेशन, शिपिंग कॉर्पोरेशन, हाइवे परियोजनाओं, एअर इंडिया, भारत पेट्रोलियम तक सबका निजीकरण होने वाला है और यहाँ हम विनिवेश की नहीं बल्कि असली निजीकरण की बात कर रहे हैं। अब इस पर नियंत्रण करने वाले हाथ बदल जाएंगे। यह पिछली बार बीजेपी सरकार में अरुण शौरी ने किया था। ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी अंततः अपने इस विचार पर अमल करने जा रहे हैं कि बिजनेस सरकार का बिजनेस नहीं है। इस निजीकरण के पीछे और भी कुछ कारण है। इतना ही नहीं मसलन सरकार की यह साख बनाना कि वह सकारात्मक पहल भी कर सकती है। इस सबके बावजूद निजीकरण का स्वागत है। राजकोषीय मामले में आदर्शवादी लोग चालू खर्चों मसलन किसानों को भुगतान या स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के लिए परिसंपत्तियों को बेचने का विरोध करेंगे, इस तर्क के साथ कि यह सब हमेशा नहीं चल सकता। एक समय आएगा जब बिक्री के लिए उपलब्ध परिसंपातियों की सूची खाली हो जाएगी। लेकिन, फिलहाल तो यह दूर की बात लगती है। इस सकारात्मक पहलू पर जरूर गौर किया जाना चाहिए कि निजी हाथों में जाने से उनके बेहतर इस्तेमाल और उनकी बेहतर सेवा से व्यवस्थागत लाभ होगा, जो कि निजीकरण का असली मकसद है।
जाने निजीकरण का उद्देश्य | Nijikaran Kya Hai in Hindi 2022 | Privatization in Hindi 2022 | Privatisation in India 2021 : Objectives
यह माना जाता है कि “व्यापार किसी भी राज्य का व्यवसाय नहीं है”। इसलिये व्यापार व अर्थव्यवस्था में सरकार का अत्यंत सीमित हस्तक्षेप होना चाहिये। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन बाज़ार कारकों के माध्यम से होता है। भूमंडलीकरण के पश्चात् इस प्रकार की अवधारण का और तेज़ी से विकास हो रहा है।
- आज के समय में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार स्वयं को “गैर सामरिक उद्यमों” के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की दक्षता पर अपना अधिक ध्यान केंद्रित करें।
- गैर महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगी सार्वजनिक संसाधनों की बड़ी धनराशि को समाज की प्राथमिकता में सर्वोपरि क्षेत्रों में लगाना चाहिये। जैसे- सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राथमिक शिक्षा तथा सामाजिक और आवश्यक आधारभूत संरचना।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगा धन जनसाधारण का होता है। इसलिये कॉर्पोरेट क्षेत्र में लगाए जा रहे अत्यधिक वित्त की मात्रा पर विचार किया जाना अति आवश्यक है। वाणिज्यिक जोखिम जिस सार्वजनिक क्षेत्र में करदाताओं का धन लगा हुआ है, ऐसे निजी क्षेत्र में हस्तांतरित करना जिसके संबंध में निजी क्षेत्र आगे आने के लिये उत्सुक और योग्य हैं।
- अव्यवहार्य और गैर महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को संपोषित किये जाने वाले दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों के उत्तरोत्तर बाह्य प्रवाह को रोककर सार्वजनिक ऋण के बोझ को कम किया जाना चाहिये।
जाने निजीकरण का लाभ | Nijikaran ke Labh| Privatization 2021: Benefits | Privatisation in India 2021 : Benefits
- निजीकरण के परिणामस्वरूप, निजीकृत कंपनियों के शेयरों की पेशकश छोटे निवेशकों और कर्मचारियों को किये जाने से शक्ति और प्रबंधन को विकेंद्रित किया जा सकेगा।
- आने वाले समय में निजीकरण का पूंजी बाज़ार पर लाभकारी प्रभाव होगा। निवेशकों को बाहर निकलने के सरल विकल्प मिलेंगे, मूल्यांकन और कीमत निर्धारण के लिये अधिक विशुद्ध नियम स्थापित करने में सहायता मिलेगी और निजीकृत कंपनियों को अपनी परियोजनाओं अथवा उनके विस्तार के लिये निधियाँ जुटाने में सहायता मिलेगी।
- आने वाले समय में निजीकृत कंपनियों में बाज़ार अनुशासन के परिणामस्वरूप वे और अधिक दक्ष बनने के लिये बाध्य होंगे और अपने ही वित्तीय एवं आर्थिक कार्यबल के निष्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। वे बाज़ार को प्रभावित करने वाले कारकों का अधिक सक्रियता से मुकाबला कर सकेंगे तथा अपनी वाणिज्यिक आवश्यकताओं की पूर्ति अधिक व्यावसायिक तरीके से कर सकेंगे। निजीकरण से सरकारी क्षेत्र के उद्यमों की सरकारी नियंत्रण भी सीमित होगा और इससे निजीकृत कंपनियों को अपेक्षित निगमित शासन की प्राप्ति हो सकेगी।
- बहुत सारे क्षेत्रों में जैसे दूरसंचार और पेट्रोलियम जैसे अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त हो जाने से अधिक विकल्पों और सस्ते तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के चलते उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
जाने निजीकरण से संबंधित समस्याएँ | Nijikaran Se Hone Wali Samasya | Privatization 2021 : Good /Bad
- निजीकरण की प्रक्रिया की सबसे बड़ी कठिनाई यूनियन के माध्यम से श्रमिकों की ओर से होने वाला विरोध है वे बडे़ पैमाने पर प्रबंधन और कार्य-संस्कृति में परिवर्तन से भयभीत होते हैं।
- भारतीय सरकार के लिए वर्तमान में वैश्विक स्तर पर चल रहे व्यापार युद्ध और संरक्षणवादी नीतियों के कारण सरकार के नियंत्रण के अभाव में भारतीय अर्थव्यवस्था पर इनके कुप्रभावों को सीमित कर पाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। निजीकरण के पश्चात् कंपनियों का तेज़ी से अंतर्राष्ट्रीयकरण होगा और इन दुष्प्रभावों का प्रभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
- निजीकरण के पश्चात् कंपनियों की विशुद्ध परिसंपत्ति का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों और जनसामान्य के लिये नहीं किया जा सकेगा।
- निजीकरण द्वारा बड़े उद्योगों को लाभ पहुँचाने के लिये निगमीकरण प्रोत्साहित हो सकता है जिससे धन संकेंद्रण की संभावना बढ़ जाएगी।
- आज के समय में कार्य कुशलता औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं का एकमात्र उपाय निजीकरण नहीं है। उसके लिये तो समुचित आर्थिक वातावरण और कार्य संस्कृति में आमूल-चूल परिवर्तन होना आवश्यक है। भारत में निजीकरण को अर्थव्यवस्था की वर्तमान सभी समस्याओं को एकमात्र उपाय नहीं माना जा सकता।